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आ न॑ इन्द्र म॒हीमिषं॒ पुरं॒ न द॑र्षि॒ गोम॑तीम् । उ॒त प्र॒जां सु॒वीर्य॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā na indra mahīm iṣam puraṁ na darṣi gomatīm | uta prajāṁ suvīryam ||

पद पाठ

आ । नः॒ । इ॒न्द्र॒ । म॒हीम् । इष॑म् । पुर॑म् । न । द॒र्षि॒ । गोऽम॑तीम् । उ॒त । प्र॒ऽजाम् । सु॒ऽवीर्य॑म् ॥ ८.६.२३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:6» मन्त्र:23 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:13» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:23


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शिव शंकर शर्मा

इन्द्र की प्रार्थना करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! (नः) हम उपासक जनों को (महीम्) बहुत (इषम्) अभिलषित अन्नराशि (आदर्षि) दीजिये। यहाँ दृष्टान्त देते हैं−(गोमतीम्) प्रशस्त गौ, हिरण्य और विविध धनादिकों से युक्त (पुरम्+न) जैसे कोई महती नगरी हो, जैसे कोई पश्वादिपूर्ण नगरी होती है, तद्वत् मेरी सम्पत्ति विविध प्रकारों के धनों से पूर्ण हो। (उत) और (प्रजाम्) सन्तति और (सुवीर्यम्) शोभन वीर्य दीजिये ॥२३॥
भावार्थभाषाः - गोधूम, यवादि अन्नों और गवादि पशुओं के विना मनुष्य जीवनयात्रा नहीं कर सकते, अतः उन वस्तुओं के लिये भूयो भूयः प्रार्थना होती है, यह आशय है ॥२३॥
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आर्यमुनि

अथ धन वा जनों के लिये परमात्मा से प्रार्थना करना कथन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (नः) हमको (महीम्) बड़े (गोमतीम्) कान्तिवाले (पुरं, न) पुर में होनेवाले के समान (इषम्) ऐश्वर्य्य को (आदर्षि) देने की इच्छा करें (उत्) और (प्रजाम्) सन्तान तथा (सुवीर्यम्) उत्तम बल देने की इच्छा करें ॥२३॥
भावार्थभाषाः - हे परमेश्वर ! हम लोग यज्ञों द्वारा आपका स्तवन करते हैं। आप कृपा करके बड़े नागरिक पुरुष के समान हमें ऐश्वर्य्यसम्पन्न करें, सुन्दर सन्तान दें और हमें बलवान् बनावें, ताकि हम अपने अभीष्ट कार्य्यों की सिद्धि करते हुए आपका विस्तार करें ॥२३॥
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शिव शंकर शर्मा

इन्द्रस्य प्रार्थना क्रियते।

पदार्थान्वयभाषाः - इन्द्र ! नोऽस्मभ्यम्। महीम्=महतीम्। इषम्=अभिलषितमन्नराशिम्। आदर्षि=आद्रियस्व=दातुं कामयस्व। अत्र दृष्टान्तः−गोमतीम्= प्रशस्तगवादिपशुयुक्ताम्। पुरमिव=नगरीमिव। यथा काचिन्नगरी पश्वादिपूर्णा भवति। तथैव अस्माकं सम्पत्तिः सर्वप्रकारधनयुक्ता भवतु। तथा। प्रजाम्=सन्ततिम्। सुवीर्यञ्च देहि ॥२३॥
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आर्यमुनि

अथ धनाद्यर्थं परमात्मप्रार्थना कथ्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! (नः) अस्मभ्यम् (महीम्) महतीम् (गोमतीम्) द्युतिमतीम् (इषम्) ऐश्वर्यम् (पुरम्, न) नागरमिव (आदर्षि) दातुमिच्छ (प्रजाम्) सन्ततिम् (उत्) अथ च (सुवीर्यम्) सुष्ठुवीर्यं च आदर्षि ॥२३॥